विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर उत्तरांचल न्यूज़ के संपादक की कलम से ..
मानसिक स्वास्थ्य में हमारा भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कल्याण शामिल होता है। यह हमारे सोचने, समझने, महसूस करने और कार्य करने की क्षमता को प्रभावित करता है।गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी स्वास्थ्य संबंधी परिभाषा में शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी शामिल करता है। मानसिक विकार में अवसाद (Depression) दुनिया भर में सबसे बड़ी समस्या है।कई शोधों में यह सिद्ध किया जा चुका है कि अवसाद, ह्रदय संबंधी रोगों का मुख्य कारण है। मानसिक विकार कई सामाजिक समस्याओं जैसे- बेरोज़गारी, गरीबी और नशाखोरी आदि को जन्म देती है।
मानसिक विकार का एक महत्त्वपूर्ण कारक आनुवंशिक होता है| मानसिक विकार की एक वजह शारीरिक परिवर्तन भी माना जाता है| अर्थात मनुष्य के किशोरावस्था, वृद्धावस्था, गर्भधारण आदि के समय में भी मानसिक विकार की संभावनाएं अधिक रहती है|आपसी संबंधों में टकराहट, किसी निकटतम व्यक्ति की मृत्यु, सम्मान को ठेस, आर्थिक हानि, तलाक, परीक्षा या प्रेम में असफलता इत्यादि मनोवैज्ञानिक कारण भी मानसिक विकार के मुख्य कारण माने जा सकते हैं| तथा सहनशीलता का अभाव, बाल्यावस्था के अनुभव, खतरनाक किस्म के विडियोगेम, तनावपूर्ण परिस्थितियाँ और इनका सामना करने की असमर्थता मानसिक विकार के लिये जिम्मेदार मानी जा रही हैं।
समाज में मानसिक बीमारी हमेशा से ही एक अपेक्षित मुद्दा रही है जिसके विषय में समाज तथा सरकारों का रुख हमेशा से ही अज्ञानता पूर्ण रहा है| आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत में महिलाओं की आत्महत्या दर पुरुषों से काफी अधिक है। जिसका मूल घरेलू हिंसा, छोटी उम्र में शादी, युवा मातृत्व और अन्य लोगों पर आर्थिक निर्भरता आदि को माना जाता है। महिलाएँ मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से पुरुषों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होती हैं। परंतु हमारे समाज में यह मुद्दा इतना सामान्य हो गया है कि लोगों द्वारा इस पर ध्यान ही नहीं दिया जाता| मानसिक विकार के मामले में हमारा तथा हमारी सरकारों का रवैया इतना नकारात्मक है कि भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में भी केवल 5147 मनोचिकित्सक और 2035 से भी कम मनोवैज्ञानिक हैं तथा भारतीय दंड संहिता के अनुसार आत्महत्या का प्रयास एक अपराध है जिसमें सिर्फ 1 वर्ष के कारावास तक की सजा है| तथा वर्तमान में केवल गुजरात और केरल दो ही राज्य ऐसे हैं जहाँ मानसिक स्वास्थ्य के लिये अलग बजट की व्यवस्था की गई है। WHO के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य विकारों का सर्वाधिक प्रभाव युवाओं पर पड़ता है और चूँकि भारत की अधिकांश जनसंख्या युवा है इसलिये यह एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आता है। उपरोक्त समस्याओं को देखते हुए वर्ष 1982 में मानसिक रोगों से निपटने के लिए सरकार द्वारा राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की शुरुआत की, गई 2003 में मानसिक अस्पतालों के आधुनिकीकरण की शुरुआत की गई, 2014 में सरकार ने राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति की घोषणा की तथा 2017 में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम पारित किया गया|
कोविड-19 महामारी के दौरान से ही देखा गया कि इस तरह की बीमारियों में लगातार वृद्धि हो रही है अतः इस क्षेत्र में उपयुक्त संसाधनों के विकास की नितांत आवश्यकता है तथा मानसिक स्वास्थ्य देखभाल जो कि राज्य सूचियों का विषय है से निपटने के लिए राज्य सरकारों को केंद्र के साथ उचित समन्वय बनाकर कार्य करने की आवश्यकता है| तथा उचित बजट आवंटन और योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन किए जाने की आवश्यकता है|