Uttarakhand News, हरिद्वार, 28 अक्तूबर 2022: हरिद्वार में भी नहाय खाय के साथ महापर्व छठ का आगाज हो गया है. व्रती गंगा में स्नान आदि कर सूर्य पूजा के साथ व्रत की शुरुआत कर रहे हैं. यहां छठ पूजा आयोजन समिति के तत्वावधान में महापर्व मनाया जा रहा है. छठी मैया और सूर्य की उपासना का महापर्व छठ की शुरुआत नहाय खाय के साथ हो गई है. हरिद्वार में भी पूर्वांचली लोक परंपरा, संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए समर्पित छठ पूजा आयोजन समिति के तत्वावधान में महापर्व मनाया जा रहा है. धर्मनगरी के सभी घाटों पर पूर्वांचल समाज के लोग आस्था और उल्लास के साथ छठ पर्व मना रहे हैं. लोग सुबह से ही गंगा स्नान कर रहे हैं.
बता दें कि हरिद्वार में छठ पर्व को लेकर साफ सफाई की जा चुकी है. आचार्य भोगेंद्र झा ने बताया कि छठ धार्मिक आस्था एवं स्वच्छता का पर्व है. इसलिए साफ सफाई पर विशेष जोर दिया जाता है. उन्होंने कहा कि छठ पर्व के पहले दिन नहाय खाय के बाद कद्दू की सब्जी बनायी जाती है. व्रत रखने वाले सबसे पहले इसे ग्रहण करते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अलावा इसे खाने के कई सारे फायदे हैं.
डॉक्टर निरंजन मिश्रा ने कहा कि लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा की (Chhath Puja 2022) की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है. चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व हिंदू पंचांग के मुताबिक छठ पूजा कार्तिक माह की षष्ठी से शुरू हो जाता है. लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ 28 अक्टूबर को नहाय खाय के साथ शुरू हो गया है.
चार दिवसीय पर्व का आगाजः आज शुद्धिकरण के बाद नहाय खाय होगा. जबकि, 29 को खरना में मीठी खीर का भोग लगाया जाएगा. मुख्य पर्व 30 अक्टूबर को होगा. उस दिन शाम के समय महिलाएं पानी में उतरकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगी. जबकि, 31 अक्टूबर की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ का समापन होगा.
वहीं, डॉ. नारायण पंडित ने कहा कि नहाय खाय के व्रती भोर बेला में उठते हैं और गंगा स्नान आदि करने के बाद सूर्य पूजा के साथ व्रत की शुरुआत करते हैं. नहाय खाय के दिन व्रती चना दाल के साथ कद्दू-भात (कद्दू की सब्जी और चावल) तैयार करती हैं और इसे ही खाया जाता है. इसके साथ ही व्रती 36 घंटे के निर्जला व्रत को प्रारंभ करते हैं. नहाय खाय के साथ व्रती नियमों के साथ सात्विक जीवन जीते हैं और हर तरह की नकारात्मक भावनाएं जैसे लोभ, मोह, क्रोध आदि से खुद को दूर रहते हैं.
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पं. विनय मिश्रा ने बताया कि ऐसी मान्यता है सरसों का साग चावल और कद्दू खाकर छठ महापर्व की शुरुआत होती है. इसलिए व्रत के पहले दिन को नहाय खाय कहते हैं. इन दोनों सब्जियों को पूरी तरह से सात्विक माना जाता है. इसमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने की क्षमता बढ़ती है. साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अगर देखें तो कद्दू आसानी से पचने वाली सब्जी है.
नहाय खाय के दिन से व्रती को साफ और नए कपड़े पहनने चाहिए. साफ-सफाई का विशेष ध्यान देना जरूरी होता है. पूजा की वस्तु का गंदा होना अच्छा नहीं माना जाता. नहाय खाय से छठ का समापन होने तक व्रती को जमीन पर ही सोना होता है. व्रती जमीन पर चटाई या चादर बिछाकर सो सकते हैं. घर में तामसिक और मांसाहार वर्जित है. इसलिए इस दिन से पहले ही घर पर मौजूद ऐसी चीजों को बाहर कर देना चाहिए और घर को साफ-सुथरा कर देना चाहिए. मदिरा पान, धूम्रपान आदि न करें. किसी भी तरह की बुरी आदतों को करने से बचें.
छठ पूजा की क्या है मान्यताः मान्यताओं के अनुसार छठी मैया को सूर्य देव की बहन माना जाता है. इसलिए छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए सूर्यदेव की पूजा की जाती है और नदियों या तालाब के तट पर सूर्यदेव की आराधना की जाती है. कहा जाता है कि सूर्य की पूजा करने से छठी मैया प्रसन्न होती हैं.
क्या है छठ पर्वः छठ पर्व, छइठ या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिंदू पर्व है. सूर्य उपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है. यह पर्व मैथिल, मगध और भोजपुरी लोगों का सबसे बड़ा पर्व है. ये उनकी संस्कृति है. यह पर्व दो बार मनाया जाता है, पहला चैत्र माह में और दूसरा कार्तिक माह में मनाया जाता है.
छठ पर्व बिहार में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. ये एकमात्र ही बिहार या पूरे भारत का ऐसा पर्व है, जो वैदिक काल से चला आ रहा है और ये बिहार की संस्कृति बन चुका है. यह पर्व बिहार की वैदिक आर्य संस्कृति की एक छोटी सी झलक दिखाता है. ये पर्व मुख्यः रूप से ॠषियों की ओर से लिखे गए ऋग्वेद में सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार मनाया जाता है.