Uttarakhand News, 16 November 2022: Earthquake: देहरादून: मंगलवार 8 नवंबर को देर रात और सुबह आए भूकंप के झटकों ने नेपाल उत्तराखंड सहित आसपास के सभी इलाकों को हिला दिया. इन भूकंप के सभी आंकड़े कलेक्ट किए गए तो जानकारी मिली कि कुछ हल्के झटके सुबह-सुबह भी महसूस किए गए. वहीं लगातार हिमालयन रेंज में आ रहे इन भूकंप के बाद तमाम शोधकर्ता और आपदा प्रबंधन एजेंसियां सकते में हैं.
अर्थक्वेक अर्ली वार्निंग सिस्टम के 165 सेंसर: उत्तराखंड में भूकंप जैसी आपदा से निपटने के लिए उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा अर्थक्वेक अर्ली वार्निंग सिस्टम डेवलप किया गया है. प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की की ओर से तैयार किए गए मोबाइल एप्लीकेशन ‘उत्तराखंड भूकंप अलर्ट’ एप को अपग्रेड किया जाएगा। इसके लिए राज्य के विभिन्न हिस्सों में 350 नए स्थानों पर सेंसर लगाए जाएंगे। अभी तक 163 स्थानों पर सेंसर लगे हैं। इसके लिए यूएसडीएमए की ओर से 58 करोड़ रुपये का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेज दिया गया है। इसके तहत पूरे प्रदेश में 165 सेंसर लगाए गए हैं. इसी सिस्टम के तहत एक एप भी डेवलप किया गया है जो भूकंप आने से कुछ देर पहले ही अलर्ट देता है.
एप ने 1 मिनट पहले दे दी थी भूकंप की सूचना: मंगलवार देर रात आए भूकंप की जानकारी आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा विकसित किए गए भूकंप एप पर रात 1:57 बजे अलर्ट के माध्यम दिया गया था. ये अलर्ट उन तमाम लोगों को प्राप्त हुआ जिन्होंने इस एप को अपने मोबाइल में इंस्टॉल किया हुआ है. वहीं उत्तराखंड में भूकंप एपी सेंटर से दूरी के अनुसार अलग-अलग समय में महसूस हुआ. देहरादून की बात करें तो देहरादून में 1:58 मिनट पर भूकंप के झटके लोगों ने महसूस किए.
अधिक से अधिक लोग भूकंप एप का करें इस्तेमाल: उत्तराखंड आपदा प्रबंधन में भूकंप वैज्ञानिक डॉ गिरीश जोशी ने बताया कि विभाग द्वारा विकसित किया गया उत्तराखंड भूकंप एप भूकंप जैसी आपातकालीन स्थिति में बेहद कारगर साबित हो सकता है. उन्होंने बताया कि हम सब को जागरूक होकर इस एप को ज्यादा से ज्यादा अपने मोबाइल में इंस्टॉल करना चाहिए. लोगों को इस बात को लेकर जागरूक रहना चाहिए कि भूकंप के आने से कुछ भी सेकंड भी पहले भी अगर इसकी जानकारी मिलती है, तो वह कम से कम अपने आप को सुरक्षित कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि मंगलवार देर रात आये भूकंप का एपी सेंटर नेपाल के इलाके में था. यह जमीन के अंदर ज्यादा गहराई में ना होकर मात्र 10 किलोमीटर भीतर था. यही वजह है कि भूकंप के झटके उत्तर भारत के अधिकतर इलाकों में महसूस किए गए.
भूकंप के P-wave और S-wave के सिद्धांत पर काम करता है एप: भूकंप वैज्ञानिक डॉ गिरीश जोशी बताते हैं कि जब भी भूकंप आता है तो भूकंप के जो शॉक वेव्स यानी कम्पन तरंगें निकलती हैं वह 2 तरीके से चलती हैं. उन्होंने बताया कि भूकंप आने पर आगे p-wave चलती है और s-wave पीछे चलती है. वैज्ञानिकों के अनुसार p-wave छोटी, कम नुकसान वाली और s-wave बड़ी और अधिक नुकसान वाली होती है. इसे वैज्ञानिक आसान भाषा में समझने के लिए बताते हैं कि s-wave को बिल्ली मान लीजिए. p-wave को शेर मानिए. दोनों एक जगह से चलती हैं तो बिल्ली तेज चलती है, लेकिन वो आपका वो नुकसान नहीं कर पाएगी जो शेर के आने पर होगा. लेकिन इसकी रफ्तार थोड़ी धीमी होती है. बिल्ली के आने पर शेर के आने का संकेत आ जाता है और शेर से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है. इसी सिद्धांत पर उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग का भूकंप एप भी काम करता है.
जितने ज्यादा सेंसर, उतनी सुरक्षा: भूगर्भ वैज्ञानिक डॉ गिरीश जोशी बताते हैं कि भूकंप एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है कि इसका फोरकास्ट नहीं कर सकते हैं. केवल इसके अलार्मिंग सिस्टम को तेज किया जा सकता है. जिसके लिए हम तकनीकी रूप से कुछ ऐसा विकसित कर सकते हैं कि हमें आते ही इसके आने से पहले ही सही जानकारी मिल जाए. इसके लिए हमारे पास पूरे प्रदेश भर में सेंसर का जाल होना बेहद जरूरी है. उन्होंने उदाहरण के तौर पर बताया कि ताइवान जैसा छोटा सा देश जोकि भूकंप बहुल देश है, वहां पर इतना कम क्षेत्रफल होने के बावजूद भी 7000 से ज्यादा सेंसर लगाए गए हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि भूकंप के अलार्मिंग सिस्टम को तेज करने के लिए सेंसर की डेंसिटी का अधिक होना बेहद जरूरी है.