Karnataka Anti Conversion Bill , 22 सितंबर 2022: विपक्षी कांग्रेस के विरोध और वॉकआउट के बीच कर्नाटक विधानसभा में बुधवार को ‘धर्मांतरण विरोधी विधेयक’ पास हो गया। इसे पिछले हफ्ते विधान परिषद ने मामूली संशोधनों के साथ पारित किया था। यह कानून पास करने वाला कर्नाटक नौवां बन गया है।
कांग्रेस के विरोध और सदन से वॉकआउट के बीच बुधवार को कर्नाटक विधानसभा ने कुछ मामूली संशोधन के साथ ‘धर्मांतरण रोधी विधेयक’ (Anti-Conversion Bill) पास कर दिया। बीते सप्ताह इस विधेयक को विधान परिषद ने पारित किया था। इसके साथ ही वह अध्यादेश वापस ले लिया गया जो इस विधेयक के पारित होने से पहले लाया गया था। कर्नाटक सरकार विधेयक को प्रभावी बनाने के लिए मई में एक अध्यादेश लाई थी क्योंकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के पास उस दौरान बहुमत नहीं था और विधान परिषद में विधेयक लंबित था। आखिरकार 15 सितंबर को विधान परिषद ने विधेयक पारित किया। गृह मंत्री अरगा ज्ञानेंद्र ने बुधवार को ‘कर्नाटक धार्मिक स्वतंत्रता अधिकार संरक्षण विधेयक 2022 को सदन में पेश किया। राज्यपाल की मंजूरी के बाद यह विधेयक 17 मई 2022 से कानून का रूप ले लगा क्योंकि इसी तारीख को अध्यादेश लागू किया गया था।
कोर्ट जा सकती है कांग्रेस:
विधानसभा में कांग्रेस के उप नेता यू टी खादर ने कहा कि सभी लोग बलपूर्वक धर्मांतरण के खिलाफ हैं लेकिन इस विधेयक की मंशा ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि यह राजनीति से प्रेरित है, अवैध है और असंवैधानिक है। इसे अदालत में चुनौती दी जाएगी और अदालत इसे रद्द कर सकती है। कांग्रेस के विधायक शिवानंद पाटिल ने कहा कि विधेयक के अनुसार धर्मांतरण करने वाले का रक्त संबंधी शिकायत दर्ज करा सकता है और इसके गलत इस्तेमाल की पूरी आशंका है।
विधेयक में क्या प्रावधान?
विधेयक में गलत व्याख्या, बलात, किसी के प्रभाव में आकर, दबाव, प्रलोभन या किसी अन्य गलत तरीके से धर्मांतरण करने पर सजा का प्रावधान है। इसके तहत दोष साबित होने पर तीन से पांच साल की सजा और 25 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है। इसके अलावा पीड़ित पक्ष नाबालिग, महिला, अनुसूचित जाति या जनजाति का होने पर तीन से दस साल की सजा और 50 हजार रुपये या उससे अधिक जुर्माने का प्रावधान है।
अवैध रूप से धर्मांतरण कर शादी भी हो सकती है रद्द
विधेयक के अनुसार, दोष साबित होने पर आरोपी को धर्मांतरित व्यक्ति को पांच लाख रुपये तक मुआवजा देना पड़ सकता है। सामूहिक स्तर पर धर्मांतरण कराने पर तीन से 10 साल जेल की सजा और एक लाख रुपये तक जुर्माना अदा करना पड़ सकता है। विधेयक के अनुसार, अवैध रूप से धर्मांतरण करवाने के उद्देश्य से की गई शादी को पारिवारिक अदालत की ओर से रद्द किया जा सकता है।