Uttarakhand News 12 February 2024: जिला प्रशासन ने कर्फ्यू को लेकर रविवार को आदेश जारी किया है। डीएम वंदना के अनुसार अब बनभूलपुरा थाना क्षेत्र के अंतर्गत ही कर्फ्यू रहेगा। अन्य क्षेत्र कर्फ्यू मुक्त रहेंगे। जोनल मजिस्ट्रेट और कुमाऊं मंडल विकास निगम के जीएम एपी वाजपेयी ने बताया कि बनभूलपुरा थाना क्षेत्र को छोड़कर शेष क्षेत्रों में विद्यालय और आंगनबाड़ी केंद्र सोमवार से खुलेंगे।
कुमाऊं विश्वविद्यालय और उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय (यूओयू) की परीक्षाएं भी सोमवार से शुरू हो जाएंगी। यूओयू के परीक्षा नियंत्रक ने बताया कि एलबीएस हल्दूचौड़, एमबीपीजी हल्द्वानी और राजकीय डिग्री कॉलेज रामनगर में यूओयू की परीक्षाएं 12 फरवरी से निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार आयोजित की जाएंगी।
नौ और 10 फरवरी को रद्द हुए पेपर के संबंध में नई तारीख की जानकारी विश्वविद्यालय की वेबसाइट से जारी की जाएगी। बता दें कि बृहस्पतिवार शाम से कर्फ्यू के कारण हल्द्वानी क्षेत्र में कक्षा 12 तक के सभी सरकारी और निजी स्कूल बंद थे। इंटरनेट सेवा बाधित होने के कारण छात्र ऑनलाइन पढ़ाई से भी वंचित थे।
बनभूलपुरा में स्थित मलिक का बगीचा कभी एक क्रिकेट मैदान के बराबर बड़ा था। जहां हरे भरे पेड़ हुआ करते थे। बगीचे के अंदर दो-तीन परिवार रहते थे, जो इसकी देखभाल करते थे। जबकि इसके चारों ओर 80-100 परिवार हुआ करते थे। 80 के दशक में इक्के दुक्के पक्के मकान बनने की शुरुआत हुई जो धीरे-धीरे हजारों में पहुंच गई। उत्तराखंड बनने के बाद बनभूलपुरा में आबादी और मकान दोनों इस कदर बड़े कि यहां की संकरी गलियां वाहनों की भीड़ से और तंग हो गई।
हल्द्वानी में अपना बचपन और जवानी दोनों गुजार चुके जगमोहन सिंह बताते हैं कि वह अकसर बनभूलपुरा की ओर आया करते थे। उनके बड़े बताते थे कि यहां एक बहुत बड़ा बगीचा है, जहां आम, लीची के पेड़ थे। जब उन्होंने होश संभाला तब से बनभूलपुरा में लाइन नंबर एक से लाइन नंबर 17 तक बसी हुई देखी। जिसमें लाइन नंबर एक, आठ और 17 की सड़कें आज की तरह ही चौड़ी थी, लेकिन शेष गलियां काफी तंग और संकरी थी। 1980 के बाद यहां रामपुर, स्वार, टांडा आदि जगहों से आकर लोग बसने शुरु हुए थे। तब यहां सड़कें कच्ची थी और अधिकतर लोग झोपड़ी में रहा करते थे
1990 के समय तक बनभूलपुरा में 12 से 15 हजार की आबादी होगी। जबकि जिस जगह पर हिंसा हुई है, उसके आसपास 3 से साढ़े 3 हजार लोग रहते होंगे। लाइन नंबर 17 में स्थित बालिका इंटर कालेज तक ही आबादी हुआ करती थी। मगर इसके बाद यहां आबादी बढ़नी शुरु हुई।
मलिक का बगीचा करीब 35 से 40 बीघा में हुआ करता था। इसके अंदर दो चार ही परिवार रहा करते थे। लेकिन इसके चारों ओर 80-100 परिवार हुआ करते थे। शायद तब से बगीचा बिकने की शुरुआत हो चुकी थी। 2000 के बाद मलिक का बगीचे में जमीन बिकनी शुरू हुई और देखते ही देखते यहां पक्के मकान भी बनने लगे। यह जमीन स्टांप पेपर में बिकी है, जिसको उत्तर प्रदेश के रामपुर, मुरादाबाद और इससे लगी उत्तराखंड की सीमा आदि क्षेत्रों में लोगों ने खरीदा है।