Uttarakhand News 11 Nov 2024: उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों सहित पर्वतीय क्षेत्रों में गत वर्षों में गर्मी में बढ़ोतरी के साथ ही गर्मी वाले दिनों की संख्या भी बढ़ रही है। अब यहां बसंत और शरद ऋतु नाम भर की रह गई हैं और इन ऋतुओं में भी खासकर मैदानों में एसी और पंखे बंद नहीं होते। खुशनुमा मौसम किसे कहते हैं आने वाली पीढ़ी शायद ही महसूस कर सके।
इसका प्रमुख कारण इन क्षेत्रों में बढ़ा हुआ कार्बन का स्तर है जिसका मुख्य स्रोत वाहनों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि और उनसे होने वाले प्रदूषण बढ़ाने में सहायक तत्वों का है। आर्य भट्ट शोध एवं प्रेक्षण विज्ञान संस्थान, एरीज, के निदेशक और मौसम विज्ञानी डॉ. मनीष नाजा के अनुसार ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते स्तर के कारण मौसम अपने निर्धारित चक्र से हट रहा है और वाहनों से होने वाला प्रदूषण इसका एक मुख्य कारक है।
भारत में 1 अप्रैल, 2020 से वाहनों के लिए यूरोपीय उत्सर्जन मानकों पर आधारित उत्सर्जन संबंधी बीएस-6 मानदंड लागू हैं। इससे पहले तक बीएस-4 मानदंड लागू थे। अप्रैल 2020 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीएस-4 वाले वाहनों की बिक्री और पंजीकरण पर रोक लगा दी गई थी। लेकिन इससे पहले के ऐसे वाहन अभी सड़कों से हटे नहीं हैं। यहां बीएस 6 वाहनों से होने वाले उत्सर्जन में नाइट्रोजन ऑक्साइड 60 मिलीग्राम प्रति किमी, पार्टिकुलेट मैटर , पीएम (पेट्रोल इंजन के लिए) 4.5 मिलीग्राम प्रति किमी, डीजल नाइट्रोजन ऑक्साइड 80 मिलीग्राम प्रति किमी, हाइड्रोजन क्लोराइड और नियोजन ऑक्साइड उत्सर्जन 170 मिलीग्राम प्रति किमी तक का हो सकता है।
एचसी और सीओ जैसे अन्य प्रदूषकों के लिए सीमाएं पहले के मानदंडों में शामिल नहीं थीं और सभी प्रदूषक तत्वों की उत्सर्जन सीमा भी इससे ज्यादा थी। इसके अनुसार दोनों मानकों से औसत प्रति वाहन प्रति किमी 300 मिलीग्राम तक प्रदूषक तत्वों का उत्सर्जन होता है। केवल हल्द्वानी, रुद्रपुर भीमताल और नैनीताल क्षेत्र में प्रतिदिन लगभग पांच हजार वाहन औसतन चालीस किमी तक का सफर करते हैं। इस अनुमान के आधार पर प्रतिदिन 60 किलोग्राम तक प्रदूषक तत्व हवा में घुल रहे हैं और वातावरण को बेहद ज्यादा प्रदूषित और साथ ही गर्म कर रहे हैं। नैनीताल में जहां की हवा हाल के वर्षों तक बहुत स्वास्थ्यप्रद मानी जाती थी और प्रदूषण के एक्यूआई लेवल के नाम से भी लोग परिचित नहीं थे अब वहां वर्तमान में एक्यूआई लेवल 160 के आसपास है जो मानक से ढाई गुना ज्यादा प्रदूषित वातावरण का संकेत है।
कार्बन से हजारों गुना ज्यादा ताप संचित करती हैं अन्य गैसें : प्रो. रावत
कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति रसायन विज्ञानी प्रो. दीवान एस रावत ने बताया कि वातावरण में जिस सल्फर हेक्सा फ्लोराइड की बढ़ोतरी बताई जाती है उसका वार्मिंग इफेक्ट कार्बन डाई ऑक्साइड से 23500 गुना ज्यादा होता है और यह एक हजार साल तक गर्मी को लॉक रखने की क्षमता रखती है। हवा से पांच गुना भारी यह गैस सर्वाधिक भारी गैसों में से है इसलिए पृथ्वी की सतह के पास अधिक होती है। गर्मी को संचित करने की क्षमता के कारण इसका विद्युत उपकरणों में बहुत अधिक उपयोग किया जाता है इसी वजह से वातावरण में इसकी मात्रा और प्रभाव बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि वार्मिंग की जिम्मेदार मानव निर्मित नाइट्रस ऑक्साइड गैस भी है जिसे इसके विशेष प्रभाव के चलते लाफिंग गैस भी कहा जाता है। यह भी कार्बन के मुकाबले 300 गुना ज्यादा गर्मी संचित कर सकती है और ओजोन परत क्षरण के लिए भी जिम्मेदार है।