Uttarakhand news, 15 November 2022: इंसानों की आबादी 800 करोड़ हो गई है, इससे पहले 2011 में 700 करोड़ आबादी हुई थी| यानी, महज 11 साल में ही दुनिया की आबादी 100 करोड़ बढ़ गई है|

इस साल जुलाई में संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान लगाया था कि 2030 तक आबादी बढ़कर 850 करोड़ और 2050 तक 970 तक पहुंच जाएगी. वहीं, 2100 तक एक हजार करोड़ के पार जाने का अनुमान है| इससे पहले 2011 में दुनिया की आबादी 700 करोड़ हुई थी, जबकि 1998 में 600 करोड़. वहीं, 11 जुलाई 1987 को 500 करोड़, इसी कारण हर साल 11 जुलाई को ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ भी मनाया जाता है| संयुक्त राष्ट्र ने इस साल जुलाई में आबादी को लेकर जो रिपोर्ट जारी की थी, वो 237 अलग-अलग देशों और इलाकों से मिले आंकड़ों के आधार पर तैयार हुई थी| ये आंकड़े उन इलाकों और देशों से जुटाए जाते हैं, जहां कम से कम एक हजार लोग रहते हैं|

आबादी का पता लगाने के लिए तीन बातों का रखा जाता है ध्यान:

आबादी का पता लगाने के लिए तीन बातों को ध्यान रखा जाता है| पहला- जन्म दर, दूसरा- मृत्यु दर और तीसरा- माइग्रेशन, इन्हीं तीन बातों से किसी भी देश की आबादी का पता चलता है| जन्म दर, मृत्यु दर और माइग्रेशन से ही पता चलता है कि किस देश की कितनी आबादी है| जन्म दर और मृत्यु दर के घटने या बढ़ने और माइग्रेशन से आबादी का ट्रेंड्स पता चलता है| जन्म दर से पता चलता है कि एक महिला अपने जीवन में औसतन कितने बच्चों को जन्म देती है| 1950 में एक महिला औसतन 5 बच्चों को जन्म देती थी. अभी 2.3 बच्चों को जन्म देती है. यानी जन्म दर घटी है 2050 तक दुनिया में औसत जन्म दर और घटकर 2.1 हो सकती है| इसी तरह मृत्यु दर में भी कमी आई है 2019 में अगर किसी व्यक्ति ने 65 साल की उम्र पार कर ली है तो उसके और 17.5 साल जीने की संभावना बढ़ जाती है, ये 1950 की तुलना में 6.2 साल ज्यादा है 2050 तक ये और बढ़कर 19.8 साल होने का अनुमान है|

वहीं, आबादी बढ़ाने में तीसरा बड़ा फैक्टर माइग्रेशन है संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, 1980 से 2000 के बीच हाई इनकम वाले देशों में 10.4 करोड़ से ज्यादा आबादी माइग्रेशन के कारण बढ़ी थी| वहीं, 2000 से 2020 के बीच 8 करोड़ से ज्यादा आबादी बढ़ने की वजह माइग्रेशन था|

क्या ये सही अनुमान है?

ये महज एक अनुमान है और ये सही भी हो सकता है और गलत भी संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि जिन 237 देशों या इलाकों का डेटा लिया गया है, उनमें से 152 देश या इलाके ही ऐसे हैं जिनका डेटा 2015 और उसके बाद का है.बाकी के 74 देशों का डेटा 2005 से 2015 के बीच का है, जबकि 11 देशों और इलाकों का डेटा 2005 से पहले का है| इसका मतलब हुआ कि संयुक्त राष्ट्र ने जो अनुमान लगाया है उसमें गलती भी हो सकती है और सही भी हो सकता है|