Uttarakhand News 29 January 2024 हल्द्वानी। भू कानून और मूल निवास 1950 कानून लागू करने की मांग को लेकर रविवार को हल्द्वानी में उत्तराखंड मूल निवास स्वाभिमान महारैली निकाली गई। इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संगठन के लोग शामिल हुए। सभी ने गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक करने का संकल्प लिया।
सबसे पहले लोग बुद्ध पार्क में जमा हुए। यहां हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि उत्तराखंड राज्य 23 साल बाद भी पहचान के संकट से जूझ रहा है। मूल निवासियों को उनका वाजिब हक नहीं मिल पाया है। अब तो मूल निवासी अपने ही प्रदेश में दूसरे दर्जे के नागरिक बनते जा रहे हैं। इसके बाद जनगीत गाते हुए लोग रैली की शक्ल में हीरा नगर स्थित गोलज्यू मंदिर की ओर रवाना हुए। यहां भी सभा में सरकार पर उपेक्षा का आरोप लगाया गया। संचालन मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के कोर सदस्य शैलेंद्र सिंह दानू और प्रांजल नौडियाल ने संयुक्त रूप से किया।
किसने क्या कहा
-मूल निवास, भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि आंदोलन को प्रदेशभर में ले जाया जाएगा। ठोस कार्यक्रम बनाकर पूरे प्रदेश में जन जागरूकता अभियान शुरू किया जाएगा। गांव-गांव और प्रदेश के विश्वविद्यालयों में जाकर युवाओं से संवाद किया जाएगा।
-सह संयोजक लुसुन टोडरिया ने कहा कि उत्तराखंड के मूल निवासियों के अधिकार सुरक्षित रखने के लिए मूल निवास 1950 और मजबूत भू-कानून लाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि आज प्रदेश के युवाओं के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है।
-वरिष्ठ पत्रकार और राज्य आंदोलनकारी चारु तिवारी ने कहा राज्य के लोग अपने अधिकारों, सांस्कृतिक पहचान और अस्तित्व को बचाने के लिए निर्णायक लड़ाई के लिए तैयार हैं।
-पहाड़ी आर्मी के संयोजक हरीश रावत ने कहा कि जिस तरह प्रदेश के मूल निवासियों के हक हकूकों को खत्म किया जा रहा है, उससे एक दिन मूल निवासियों के सामने पहचान का संकट खड़ा हो जाएगा।
-उपपा नेता पीसी तिवारी ने कहा कि हम 23-24 साल बाद जागे। अब दिल्ली और दून की सरकारों को आवाज सुनानी है। यहां के सीएम यूपी जाकर हरिद्वार के लिए पानी मांग रहे हैं वह भी टिहरी का पानी। हमारा ही पानी हमको ही मांगना पड़ रहा।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को भी दी बहस की चुनौती
हल्द्वानी। मूल निवास भू-कानून समन्वय संघर्ष समिति ने भाजपा अध्यक्ष प्रदेश महेंद्र भट्ट के बयान पर नाराजगी जताई और उन्हें खुली बहस की चुनौती भी दी। संयोजक मोहित डिमरी ने कहा कि, प्रदेश अध्यक्ष आंदोलन से जुड़े लोगों को विकास विरोधी और माओवादी कह कर गलत बयान दिया है। डिमरी ने कहा कि यदि उनमें साहस हो, तो वे मूल निवास और भू-कानून के मुद्दे पर आंदोलन कर रहे लोगों के साथ बहस करके दिखाएं।
चंडीगढ़, दिल्ली से भी पहुंचे युवा, यूटयूबरों ने लाइव दिखाया
दिल्ली से पहुंचे पौड़ी निवासी राजेंद्र पहाड़ प्रेमी, चंडीगढ़ से पहुंचे मोहिंदर सिंह ने कहा कि उत्तराखंडियों को एकजुट होकर काम करना है। पौड़ी निवासी हिमाचल में जन्मे यूटयूबर साहिल राजपूत ने कहा कि यह हमारी कमजोरी है कि उत्तराखंड में इतने सारे यूटयूबर हैं जो आगे आकर आंदोलन को धार दे सकते हैं लेकिन एकजुट नहीं हो रहे हैं।
रंगवाली पिछौड़ा पहने पहुंचीं महिलाएं
महारैली में रंगवाली पिछौड़ा पहने कई महिलाएं पहुंची, जिनके हाथों में चुप न रहेंगे, कुछ न सहेंगे, मूल निवास लेके रहेंगे, बोल पहाड़ी हल्ला बोल, नहीं चाहिए दिल्ली दून, हमें चाहिए भू कानून, हमें चाहिए मूल निवास बैनर पकड़े हुए थे। कई महिलाएं अपने छोटे बच्चों को भी साथ लेकर पहुंची।
ये हैं मांगें
– मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 लागू की जाए।
– प्रदेश में ठोस भू-कानून लागू हो।
– शहरी क्षेत्र में 250 मीटर भूमि खरीदने की सीमा लागू हो। जमीन उसी को दी जाय, जो 25 साल से उत्तराखंड में सेवाएं दे रहा हो या रह रहा हो।
– ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगे।
– गैर कृषक द्वारा कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगे।
– पर्वतीय क्षेत्र में गैर पर्वतीय मूल के निवासियों के भूमि खरीदने पर तत्काल रोक लगे।
– राज्य गठन के बाद से वर्तमान तिथि तक सरकार की ओर से विभिन्न व्यक्तियों, संस्थानों, कंपनियों आदि को दान या लीज पर दी गई भूमि का ब्योरा सार्वजनिक किया जाए।
– प्रदेश में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में लगने वाले उद्यमों, परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण या खरीदने की अनिवार्यता है या भविष्य में होगी, उन सभी में स्थानीय निवासी का 25 प्रतिशत और जिले के मूल निवासी का 25 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित किया जाए।
– ऐसे सभी उद्यमों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय व्यक्ति को दिया जाना सुनिश्चित किया जाए।
2018 में पुराने भू कानून में तीन संशोधन से सुलग रही है आग, 2002 में पहली बार भू कानून का प्रावधान, 2007 में बदला
2002 में पहली चुनी गई कांग्रेस की सरकार ने भू कानून का प्रावधान किया था, लेकिन सदन में उसका विरोध हो गया। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने विजय बहुगुणा के नेतृत्व में उपसमिति बनाई।
तब यह कहा गया था कि अन्य राज्य के लोग उत्तराखंड में सिर्फ 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे। 2007 में इसे घटा कर फिर 250 वर्ग मीटर कर दिया गया। साफ था कि किसी अन्य राज्य के व्यक्ति को अगर उत्तराखंड में जमीन खरीदनी है तो वह 250 वर्ग मीटर कृषि जमीन ही खरीद सकता था। 2018 में यह प्रावधान फिर बदल गया। आंदोलनकारियों में यह आग उसी समय से सुलग रही थी और इसे रद्द करने की मांग करते आ रहे हैं।
6 अक्तूबर 2018 में राज्य सरकार नया अध्यादेश लाई, जिसमें उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि सुधार अधिनियम 1950 में संशोधन का विधायक पारित कराया। इसमें दो धाराएं 143 और धारा 154 जोड़ी गई। इसके तहत पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को ही समाप्त कर दिया गया। यह फैसला उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश में निवेश और उद्योग को बढ़ावा देने के लिए किया था। इससे यह हुआ की किसी भी अन्य राज्य का व्यक्ति उत्तराखंड में जितनी चाहे उतनी जमीन खरीद सकता था। आंदोलनकारी अब 2018 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार की ओर से लाए गए तीन भू कानून संशोधन को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।
राज्य आंदोलनकारी चारू चंद्र तिवारी का कहना है कि अंग्रेजों के समय में, आजादी की लड़ाई में भी जमीनों के सवाल हुए। फिर आजादी के बाद 70 के दशक में वन आंदोलन में भी जमीनों के सवाल उठे। फिर यह बात उठी की उत्तराखंड बन जाएगा तो हम अपनी नीतियां बनाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अंग्रेजों के जाने के बाद और 1964 के बाद हमारे यहां जमीनों की पैमाइश ही नहीं हो सकी है। अंग्रेजों के समय में 11 बार जमीनों की पैमाइश की जा चुकी थी। हर 40 साल में जमीनों का बंदोबस्त होता है। 2004 में पैमाइश का काम हो जाना चाहिए था। हम तो यह भी मांग कर रहे हैं कि 2018 में जो हमारे पुराने कानूनों में संशोधन कर तीन भू कानून सरकार लाई है, उसे तुरंत रद्द किया जाए। उत्तराखंड के पूर्ववर्ती जमीनों की पैमाइश की जाए। फॉरेस्ट में हमारी जमीनें जो सरकार के खाते में गई है, वह सारी जमीनों को मुक्त किया जाए। उत्तराखंड के अंदर अन्य राज्यों के तरह भू कानून बने हैं।