Uttarakhand News, 5 दिसंबर 2022: इस साल फरवरी से रूस और यूक्रेन के बीच जंग जारी है। 9 महीने इस जंग को हो चुके हैं। जंग थमने के आसार भी नहीं दिख रहे हैं। इस जंग का खामियाजा सिर्फ यूक्रेन को ही नहीं भुगतना पड़ रहा है। पूरी दुनिया में रूस और यूक्रेन की जंग से किसी न किसी कारण हाहाकार है। दुनियाभर को इस जंग की वजह से 32 लाख करोड़ यानी करीब 4 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हो चुका है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलिंस्की के आर्थिक सलाहकार ओलेग उस्तेन्को ने ये बात कही है। उनके मुताबिक यूक्रेन को 1 ट्रिलियन डॉलर यानी 8 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है। रूस अब तक 8000 अरब रुपए इस जंग में खर्च कर चुका है।
144 लाख करोड़ होगी मारे गए लोगों की कीमत:
युद्ध में मारे गए लोगों में अधिकांश सैनिक थे, जिनकी औसत उम्र करीब 30 वर्ष थी। इस लिहाज से देखें, तो मुद्रास्फिती जैसे कारकों को जोड़े बिना भी अगले 30 वर्ष तक अगर वे इसी औसत से अर्थव्यवस्था में योगदान देते, तो यह कीमत करीब 144 लाख करोड़ रुपये होती है। कोविड महामारी और फिर युद्ध की वजह से दुनियाभर के 20 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी के भयावह दुष्चक्र में जा फंसे हैं, उनके पास न तो दो वक्त के लिए भोजन है और न काम।
दोनों तरफ से 1.90 लाख से ज्यादा सैनिकों की मौत:
रूस-यूक्रेन युद्ध में अब तक 1.90 लाख से ज्यादा सैनिकों की मौत हो चुकी है। करीब 1.5 करोड़ यूक्रेनी नागरिक युद्ध की वजह से जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इनमें से करीब 75 लाख विस्थापित हुए हैं, जबकि शेष भोजन, ईंधन, बिजली और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं होने की वजह से जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यूक्रेनी सेना का दावा है कि युद्ध में 90,090 रूसी सैनिकों की मौत हुई है। वहीं, एक अमेरिकी सेना के शीर्ष जनरल के मुताबिक यूक्रेन के एक लाख से ज्यादा सैनिक युद्ध में हताहत हुए हैं। रूस का इस संबंध में दावा है कि यूक्रेन के करीब 1.5 लाख सैनिकों ने युद्ध में जान गंवाई है।
यूक्रेन को युद्ध पूर्व स्थिति में आने में लगेंगे 20 साल:
यह कीमत कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि युद्ध की कीमत रूस की पूरी अर्थव्यवस्था से करीब दोगुनी है। अगर रूस को युद्ध की वजह से दुनिया को हुए नुकसान की कीमत चुकानी पड़े, तो करीब 10 वर्ष तक प्रत्येक रूसी को मुफ्त में काम करना पड़ेगा। इसके साथ ही रूस को इस दौरान अपने तमाम प्राकृतिक संसाधनों, कारोबार और अन्य जरियों से होने वाली आय को भी दुनिया को सौंपना पड़ेगा। वहीं, बिना बाहरी मदद के यूक्रेन को युद्ध से पहले की स्थिति में आने में करीब 20 वर्ष लग जाएंगे।
पूरे रूस को एक दशक करनी होगी बंधुआ मजदूरी:
जाहिर है युद्ध में दोनों तरफ से मारे गए सैनिकों और नागरिकों की कोई कीमत नहीं हो सकती, लेकिन फिर भी प्रतिव्यक्ति आय और जीवन प्रत्याशा के आधार पर अर्थव्यवस्था में उनके योगदान का आकलन किया जाए, तो दोनों देशों की सकल राष्ट्रीय आय को इनकी जनसंख्या से विभावित कर प्रतिव्यक्ति आय के लिहाज से देखें, तो प्रत्येक रूसी 26 लाख रुपये और यूक्रेनी 11 लाख रुपये सालाना औसत योगदान अपने देशों की अर्थव्यवस्था में देते हैं।
सेना पर मौसम की मार पड़ने पर बातचीत के रास्ते पर लौंटेंगे पुतिन : अमेरिका
कीव। यूक्रेन-रूस युद्ध की रफ्तार अब धीमी पड़ने लगी है। अमेरिकी खुफिया विभाग के प्रमुख ने दावा है कि जैसे-जैसे ठंड बढ़ रही है। दोनों तरफ से सैन्य संचालन मुश्किल हो रहा है, जिसकी वजह से युद्ध धीमा पड़ गया है। इसे अच्छा संकेत बताते हुए यूएस नेशनल इंटेलिजेंस की निदेशक एवरिल हैन्स ने कहा, मौसम की मुश्किलों से जूझते हुए आखिर रूस बातचीत के रास्ते पर लौट सकता है। वहीं, रविवार को ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय ने खुफिया रिपोर्टों के हवाले से दावा किया कि रूसी लोग अब युद्ध से ऊब चुके हैं। पुतिन के पास युद्ध को जारी रखने के लिए शुरुआत जैसा जन समर्थन नहीं बचा है। इसी सिलसिले में रूसी पोर्टल मेदुजा ने दावा किया कि हाल ही में पुतिन और क्रेमलिन की सुरक्षा करने वाले बल फेडरल प्रोटेक्शन सर्विस ने एक गोपनीय सर्वेक्षण किया। मेदुजा ने दावा किया कि 55 फीसदी रूसी चाहते हैं कि शांति वार्ता की जाए।
मैक्रों बोले, रूस की मांग पर विचार किया जाए:
दो दिन पहले ही अमेरिकी दौरे से लौटे फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा, पश्चिम को विचार करना चाहिए कि अगर पुतिन यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने के लिए बातचीत के लिए सहमत हों, तो रूस की सुरक्षा गारंटी की मांग को किस तरह से पूरा किया जा सकता है। रूस की सुरक्षा गारंटी मांग के मुताबिक नाटो को 1997 की सीमाओं पर लौटाया जाए और नाटो के विस्तार के खिलाफ रूस को वीटो मिले। हालांकि, शनिवार को यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की से मिलने पहुंची अमेरिकी राज्य मंत्री विक्टोरिया न्यूलैंड ने कहा कि पुतिन कपटी और धूर्त इंसान हैं, वे बातचीत में भरोसा नहीं रखते, बल्कि युद्ध में बर्बरता को नए स्तर पर ले जा रहे हैं।