पौड़ी गढ़वाल, 23 सितंबर 2022: उत्तराखंड की एक रामलीला ऐसी भी है, जिसकी धूम देश की सरहदों से हजारों मील दूर यूनेस्को तक है. पौड़ी की रामलीला को यूनेस्को ने भी अपना संरक्षण दिया है. जी हां, हम बात कर रहे हैं पौड़ी की रामलीला की. यह रामलीला करीब 125 साल से चली आ रही है. एक खास बात और यहां महिला का किरदार पुरुष के बजाय महिलाएं ही निभा रहीं हैं. आइए जानते हैं पौड़ी मंडल मुख्यालय में आयोजित होने वाली इस खास रामलीला के बारे में.
कई मायनों में खास है यह राम लीला
यह राम लीला कई मायनों में खास है। कई धर्मों के लोग मिलकर इसके आयोजन में अहम भूमिका निभाते हैं। वहीं इसमें सभी महिला पात्रों को महिलाओं द्वारा ही अभिनीत किया जाता है। आइए जानते हैं इसकी खासियत :
- 1897 से शुरू हुई इस रामलीला को 1908 में वृहद स्वरूप दिया गया। जिसमें भोलादत्त काला, अल्मोड़ा निवासी तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक पूर्णचंद्र त्रिपाठी, क्षत्रिय वीर के संपादक कोतवाल सिंह नेगी व साहित्यकार तारादत्त गैरोला ने अहम भूमिका निभाई।
- इस रामलीला ने आजादी के बाद समाज में जागरुकता लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- वर्ष 1943 तक रामलीला का मंचन सात दिन तक होता था, लेकिन फिर इसे शारदीय नवरात्र में आयोजित कर दशहरा के दिन रावण वध की परंपरा भी शुरू की गई।
- इस रामलीला में नौटंकी शैली के अनुसार मंचन किया जाता था लेकिन वर्ष 1945 के बाद इस शैली का स्थान रंगमंच की पारसी शैली ने ले लिया। वर्ष 1957 में पौड़ी का विद्युतीकरण होने के बाद रामलीला मंचन का स्वरूप भी निखरा।
- इसके संगीत को शास्त्रीयता से जोड़ा गया। स्क्रिप्ट में बागेश्री, विहाग, देश, दरबारी, मालकोस, जैजवंती, जौनपुरी जैसे प्रसिद्ध रागों पर आधारित रचनाओं का समावेश किया गया।
- गीतों के पद हिंदी, संस्कृत, उर्दू, फारसी, अवधी, ब्रज के अलावा अन्य देशज शब्दों की चौपाइयों में तैयार किए गए। कुछ प्रसंग की चौपाइयां ठेठ गढ़वाली में भी प्रस्तुत की गईं।
- वहीं पौड़ी की रामलीला की खास बात यह है कि इसमें हिंदुओं के साथ मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लोग भी हिस्सा लेते हैं।
- इस रामलीला में दृश्य के अनुरूप सेट लगाए जाते हैं। यहीं कारण है कि हनुमान का संजीवनी बूटी लाते समय हिमालय आकाश मार्ग से उड़ते हुए दिखाया जाना काफी लोकप्रिय है।
- पूरे उत्तराखंड में पौड़ी की रामलीला में ही सर्वप्रथम महिला पात्रों को रामलीला मंचन में शामिल किया। 2002 से शुरू हुआ यह सिलसिला वर्तमान में भी जारी है।
यूनेस्को की धरोहर है पौड़ी की रामलीला
पौड़ी की इस रामलीला ने उत्तराखंड का नाम अंतरराष्ट्रीय पटल पर रोशन किया है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र दिल्ली ने देशभर में रामलीलाओं पर शोध किया। जिसमें फरवरी 2008 में केंद्र ने पौड़ी की रामलीला ऐतिहासिक धरोहर घोषित है। यूनेस्को ने उसे यह मान्यता प्रदान की है।