उत्तराखंड में नकली दवाओं का जाल फैल रहा है। या यूं कहें कि नकली दवा के धंधेबाजों के लिए राज्य सॉफ्ट टारगेट बन गया है। यहां हर अंतराल बाद मामले पकड़े जा रहे हैं। खासकर रुड़की व आसपास के क्षेत्र में यह धंधा खूब फल फूल रहा है। इसमें संलिप्त लोग के खिलाफ खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन ने एफआईआर भी दर्ज कराई, पर सबूतों के अभाव में वह छूट जा रहे हैं। जिसके बाद वह फिर इसी काम में लग जा रहे हैं।

ऐसे में विभाग इन धंधेबाज का नेटवर्क तोड़ पाने में नाकाम रहा है। इसका एक बड़ा कारण संसाधनों का अभाव है। संसाधनों की बात छोड़िए अफसर और स्टाफ भी उंगलियों में गिनने लायक हैं। राज्य में नकली दवाओं को पकड़ने का जिम्मा जिस विभाग के पास है, वहां ड्रग इंस्पेक्टर व कर्मचारियों का भारी टोटा है।

सरकार ने पूर्व में नए ढांचे को मंजूरी दी थी, पर अभी तक नई भर्ती नहीं हो पाई है। स्थिति ये है कि राज्य में जिलों की संख्या के बराबर भी ड्रग इंस्पेक्टर नहीं हैं। ऐसे में नशीली व नकली दवाओं की रोकथाम के लिए कार्ययोजना तमाम बनती हैं, लेकिन इस पर सही ढंग से अमल नहीं हो पाता।


फील्ड में केवल छह ही अधिकारी

वर्तमान में फील्ड में केवल छह ही अधिकारी हैं। वरिष्ठ औषधि निरीक्षक डा. सुधीर कुमार के पास सहायक औषधि नियंत्रक व लाइसेंसिंग अथॉरिटी गढ़वाल का प्रभार है। वरिष्ठ औषधि निरीक्षक मीनाक्षी बिष्ट के पास अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत और पिथौरागढ़ का जिम्मा है। वहीं, वरिष्ठ औषधि निरीक्षक चंद्र प्रकाश नेगी के पास भी उत्तरकाशी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग एवं चमोली का जिम्मा है। वरिष्ठ औषधि निरीक्षक नीरज कुमार देहरादून व ऊधमसिंहनगर देख रहे हैं। औषधि निरीक्षक अनिता भारती एवं मनेंद्र सिंह राणा के पास क्रमश: हरिद्वार एवं रुड़की की जिम्मेदारी है।


औषधि निरीक्षक की स्थिति है खराब

कहने को 200 मेडिकल स्टोर व 50 फार्मा कंपनियों पर एक औषधि निरीक्षक का मानक है। राज्य में छह वरिष्ठ औषधि निरीक्षक व 33 औषधि निरीक्षक के पद स्वीकृत हैं। मुख्यालय, देहरादून, हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर में पांच-पांच, नैनीताल में तीन, पौड़ी में दो और बाकी जिलों में एक-एक औषधि निरीक्षक होना चाहिए। पर धरातल पर स्थिति अत्यंत बुरी है। ऐसे में नशीली व नकली दवा के धंधेबाजों के हौसले बुलंद हैं।