Uttarakhand News 13 June 2024: सुरक्षित निर्माण की राह अब आसान हो जाएगी। और इसके लिए लिडार तकनीक का उपयोग किया जाएगा। जो एक सुदूर संवेदी तकनीकी है। इसमें प्रकाश का उपयोग पल्स लेजर के रूप में किया जाता है। हेलिकॉप्टर और ड्रोन के माध्यम से सर्वे किया जाएगा।

राज्य के नैनीताल समेत चार शहरों का जल्द लिडार (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग) सर्वे होगा। इससे इन शहरों में सुरक्षित निर्माण की राह आसान हो जाएगी। यूएसडीएमए की कार्यशाला में उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के निदेशक शांतनु सरकार ने बताया कि हेलिकॉप्टर और ड्रोन के माध्यम से नैनीताल, उत्तरकाशी, चमोली व अल्मोड़ा का लिडार सर्वे जल्द शुरू होगा।

इससे प्राप्त होने वाले डाटा को विभिन्न विभागों के साथ साझा किया जाएगा, जिससे सुरक्षित निर्माण कार्यों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। निदेशक शांतनु ने कहा कि भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में रॉक फॉल टनल बनाकर भी यातायात को सुचारु बनाए रखा जा सकता है और जनहानि को कम किया जा सकता है।

बदलावों को समझना आवश्यक
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग के डॉ. सुरेश कन्नौजिया ने बताया कि नासा-इसरो सार मिशन (निसार) इसी साल लांच होगा। इस तकनीक की आपदा प्रबंधन में बड़ी उपयोगिता होगी। उन्होंने कहा कि भूस्खलन न्यूनीकरण के लिए भू-संरचना तथा स्लोप पैटर्न में आ रहे बदलावों को समझना आवश्यक है।

यूएलएमएमसी के प्रिंसिपल कंसलटेंट डॉ. मोहित पूनिया ने भू-तकनीकी जांच तथा ढाल स्थिरता विश्लेषण पर अपनी बात रखी। आईआईटी रुड़की के डॉ. एसपी प्रधान ने कहा कि भूस्खलन रोकने के लिए ग्राउटिंग तकनीक कारगर है, बस इसे कॉस्ट इफेक्टिव बनाया जाना जरूरी है।
क्या होता है लिडार

लिडार (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग) तकनीक होती है, जो एक सुदूर संवेदी तकनीकी है। इसमें प्रकाश का उपयोग पल्स लेजर के रूप में किया जाता है। लिडार तकनीक से किसी क्षेत्र का सर्वेक्षण विमान में सुसज्जित लेजर उपकरणों के माध्यम से किया जाता है। इसमें जीपीएस और स्कैनर का भी सहयोग लिया जाता है।

हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड सबसे ज्यादा संवेदनशील

वाडिया भूविज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. कलाचंद सेन ने कहा कि हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड भूस्खलन से लिहाज से सबसे ज्यादा प्रभावित और संवेदनशील है। भूस्खलन की घटनाओं को कम करने के लिए सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों की मैपिंग की जानी जरूरी है। वह डाटा सिटी प्लानर्स को उपलब्ध करवाकर सुरक्षित निर्माण कार्यों को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। हिमालय बहुत संवेदनशील हैं और मानवीय गतिविधियों के कारण उन्हें काफी नुकसान पहुंच रहा है। इस पर गंभीर चिंतन जरूरी है।