Uttarakhand News 17 April 2025: उत्तराखंड की 125 किलोमीटर लंबी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग ब्रॉड गेज रेल परियोजना से जुड़ी है। इस परियोजना की टनल-8 भारत की सबसे लंबी रेल सुरंग है। इसी सुरंग में पहली बार टीबीएम यानी टनल बोरिंग मशीन ”शक्ति” और ‘शिवा’ से सुरंग को आर-पार करने में सफलता मिली है। हिमालयन रेल कनेक्टिविटी के लिए इसे एक बड़ी कामयाबी के रूप में देखा जा रहा है।

14.57 किलोमीटर लंबी इस सुरंग की खुदाई आधुनिक टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) ”शक्ति” की मदद से की गई, जो भारत की सुरंग निर्माण तकनीक के इतिहास में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह पहली बार है जब देश के पहाड़ी इलाकों में रेल सुरंग बनाने के लिए टीबीएम तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। 9.11 मीटर व्यास वाली इस सिंगल-शील्ड रॉक टीबीएम ने काम में जो तेजी और सटीकता दिखाई है, वह वैश्विक स्तर पर एक नया मापदंड स्थापित करती है।

आरवीएनएल के चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर प्रदीप गौर का कहना है कि यह सफलता भारत के पहाड़ी राज्यों में कनेक्टिविटी बढ़ाने के सरकार के मिशन में एक बड़ा कदम है। यह सिर्फ तकनीकी जीत नहीं, बल्कि आरवीएनएल की मेहनत, हिम्मत और चुनौतीपूर्ण इलाकों में बड़े प्रोजेक्ट पूरा करने की ताकत दिखाती है। शक्ति ने न सिर्फ चट्टानें तोड़ीं, बल्कि एक बेहतर और जुड़े हुए उत्तराखंड के लिए मार्ग प्रशस्त किया है।

शक्ति ने पहली सफलता हासिल कर ली
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग परियोजना पांच हिमालयी जिलों में देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, गौचर और कर्णप्रयाग जैसे प्रमुख शहरों को जोड़ेगी। 125 किलोमीटर की इस रेल लाइन का 83% हिस्सा सुरंगों से होकर गुजरेगा, जिसमें 213 किलोमीटर से ज्यादा की मुख्य और निकास सुरंगें शामिल हैं। टनल-8, जो देवप्रयाग और जनासू स्टेशनों के बीच स्थित दोहरी सुरंगें हैं, का निर्माण दो टीबीएम (टनल बोरिंग मशीन) ”शक्ति” और ”शिवा” की मदद से किया गया। इनकी खुदाई व्यास 9.11 मीटर है और ये उन्नत सपोर्ट सिस्टम्स से लैस हैं। शक्ति ने पहली सफलता हासिल कर ली है, जबकि दूसरी टीबीएम ”शिवा” के जुलाई 2025 तक ब्रेक थ्रू हासिल करने की उम्मीद है।

टीबीएम को लाने में कई मुश्किलों का करना पड़ा सामना
देवप्रयाग से जनासु सुरंग की कटिंग के लिए लाई गई टीबीएम मशीन को यहां लाने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। रेल विकास निगम का कहना है कि करीब 165 मीट्रिक टन वजनी मशीन के पार्ट्स को मुंद्रा बंदरगाह से हिमालय की तंग सड़कों और पुराने पुलों से होते हुए साइट तक लाया गया। यह सुरंग भूकंप के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र में है और टेक्टोनिक रूप से सक्रिय सेसमिक जोन IV में आती है इसलिए इसे बनाने में खास डिजाइन और लगातार उन्नत भूवैज्ञानिक जांच की जरूरत पड़ी।